६२वा गणतंत्र
६२वा गणतंत्र दिवस लो आ गया,
इकसठ से बासठ की यात्रा का रोमांच,
आखों के पर्दे पर फ्लैश बैक सा चल गया |
जो यात्रा, प्याज के २० रुपये प्रति किलो से शुरू हुई,
वो ६५ रुपये के नए आयाम को छू गई,
तरक्की और स्पीड तो देखो,
जापान की बुलेट ट्रेन को भी पीछे छोड़ गई |
कुछ और विश्लेषण करें,
इकसठ से बासठ तक के सफ़र का अगर,
लास वेगास और मियामी से भी ज़्यादा,
हॅपनिंग अपना देश रहा |
अमरीका में मार्क ज़ुक्केरबेर्ग बिलियनेर बना,
तो हमारे यहाँ,
टू जी की स्पीड से ए राजा,
उसका भी बाप बना |
कॉमन वेल्थ गेम्स करा,
कलमाडी ने क्या खूब झंडा गाड़ा,
बार्गैनिन्ग का अर्थ बदला,
चार-चार आने के उपकर्नो को,
लाखों-लाख में खरीदा |
गणतंत्र हमारा,
अभी कम बुलंद हुआ था,
कि अशोक चावान ने स्वर्णिम अध्याय जोड़ा
जब आपका-हमारा हिस्सा कम पड़ा,
शहीदों का “आदर्श” भी खाया और पचाया |
नही है मंशा “अनुपम” की,
सिर्फ़, कमियाँ आज गिनाने की,
निवेदन कहो, या पुकार है
बिखरते गणतंत्र को संगठित करने की |
very nice poem dude, today i checked your site after a long time, one of my friend suggested to read it long ago n i read n i liked that time,, good stuff.. keep it up man ..
thanks man
checked your site, loved your writing…keep writing
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